पुणे के पास 4 जुलाई, 2025 को एक कस्बे में नदी के किनारे अवैध निर्माण गतिविधि की रिपोर्टिंग कर रहीं पत्रकार स्नेहा बर्वे पर दिनदहाड़े एक जघन्य हमला किया गया. इस हमले में उन्हें लकड़ी की छड़ से तब तक पीटा गया जब तक वह बेहोश नहीं हो गईं.
इस मामले के मुख्य आरोपी पांडुरंग सखाराम मोर्डे, जो राजनीतिक संबंध वाले एक स्थानीय व्यवसायी हैं, को पुलिस द्वारा अभी तक गिरफ्तार नहीं किया जा सका है.
मालूम हो कि इस खौफनाक हमले का वीडियो समर्थ भारत अखबार और एसबीपी यूट्यूब चैनल की संस्थापक-संपादक बर्वे द्वारा महाराष्ट्र के पुणे जिले के मंचर कस्बे के पास निगोथवाड़ी गांव में नदी के किनारे अवैध निर्माण गतिविधि के बारे में वीडियो पर बोलने से शुरू होता है. जब अचानक मोर्डे तेजी से एक लाठी उठाकर उन पर हमला कर देते हैं, वे मदद के लिए बार-बार चीखती-चिल्लाती हैं लेकिन बावजूद इसके उन पर हमला जारी रहता है.
पत्रकार बर्वे को उस बड़ी रॉड से तब तक पीटा गया, जब तक वह बेहोश नहीं हो गईं. इस हमले की रिकॉर्डिंग कर रहे कैमरामैन एजाज शेख के साथ भी मारपीट की गई, जब मोर्डे के सहयोगियों को पता चला कि हमले की वीडियोग्राफी की जा रही है. उन्हें बचाने आए राहगीरों को भी बुरी तरह पीटा गया, जिसमें एक का हाथ टूट गया, जबकि दूसरे की नाक टूट गई.
बर्वे को तुरंत स्थानीय अस्पताल ले जाया गया और फिर पिंपरी चिंचवाड़ के डीवाई पाटिल अस्पताल में स्थानांतरित कर दिया गया. उनके सिर और पीठ में चोटें आई हैं, और उनके सिर के सीटी स्कैन में अंदरूनी चोट और सूजन दिखाई दे रही है.
अस्पताल से छुट्टी मिलने के बाद फ्री स्पीच कलेक्टिव से बात करते हुए बर्वे ने कहा कि वीडियो देखने तक वह हमले की भयावहता को समझने की स्थिति में भी नहीं थीं.
बर्वे ने बताया कि आरोप हैं कि मोर्डे ने नदी का पानी रोकने के लिए दीवार खड़ी कर दी है, जिससे सब्ज़ी मंडी में पानी भर सकता था.
उन्होंने कहा, ‘मैंने कभी नहीं सोचा था कि ऐसा हमला होगा. मैं पहले भी घटनास्थल पर गई थी. मैंने वहां तस्वीरें ली थीं और अपनी स्क्रिप्ट तैयार की थी. मैं उनका बयान भी लेना चाहती थी. लेकिन उन्होंने कैमरे पर आने से इनकार कर दिया और अचानक मुझे पीटना शुरू कर दिया.’
पांडुरंग मोर्डे कौन हैं?
पांडुरंग मोर्डे एक स्थानीय व्यापारी हैं, जिनके शिवसेना के शिंदे गुट और राष्ट्रीय कांग्रेस पार्टी (राकांपा) के अजित पवार गुट, दोनों के साथ मज़बूत राजनीतिक संबंध हैं.
मोर्डे का आपराधिक रिकॉर्ड भी है. उन पर क्रमशः 2003 और 2007 में दर्ज दो अलग-अलग मामलों में हत्या और हत्या के प्रयास का आरोप लगाया गया है. एक मामले में उन्हें बरी कर दिया गया है और दूसरा मामला अभी लंबित है. फिलहाल वह ज़मानत पर बाहर हैं.
उल्लेखनीय है कि इस हमले को लेकर अभी तक किसी भी राजनीतिक पक्ष का कोई बयान सामने नहीं आया है.
गौरतलब है कि बर्वे ने आठ साल पहले अपने पत्रकारिता की शुरुआत की थी. उन्होंने अपना प्रकाशन और यूट्यूब चैनल शुरू करने का फैसला किया. बर्वे ने कहा, ‘मैं कड़ी मेहनत कर रही हूं और मैंने बहुत सारे घोटालों का पर्दाफ़ाश किया है. इस क्षेत्र में ऐसा काम कोई और नहीं करता.’
बर्वे इन विवादों से अनजान नहीं हैं. पिछले जुलाई में शिरूर के पूर्व सांसद शिवाजीराव अधलराव पाटिल द्वारा धमकी दिए जाने के बाद उन्होंने अंबेगांव पुलिस में शिकायत दर्ज कराई थी. पाटिल ने आरोप लगाया था कि उनकी रिपोर्टिंग के कारण उन्हें हार का सामना करना पड़ा.
इस बातचीत की एक वीडियो रिकॉर्डिंग स्थानीय टेलीविजन चैनलों द्वारा प्रसारित की गई थी.
ताज़ा हमले को लेकर उन्होंने कहा, ‘मैं अपनी जान बचाकर भागी, लेकिन मैं चुप नहीं रहूंगी. मुझ पर हमला किसी भी महिला, किसी भी पत्रकार पर हो सकता है,’
गौरतलब है कि स्नेहा बर्वे पर हुआ हमला देश में प्रेस की आज़ादी की नाज़ुक स्थिति को दर्शाता है, खासकर उन इलाकों में, जहां पत्रकारों को स्थानीय सत्ताधारियों के भ्रष्टाचार और अवैध गतिविधियों पर रिपोर्ट करने की हिम्मत करने पर तुरंत हिंसक प्रतिशोध का सामना करना पड़ता है.
पिछले साल, रिपोर्टर्स विदाउट बॉर्डर्स (आरएसएफ) की एक रिपोर्ट में कहा गया था कि 2014 से भारत में मारे गए 28 पत्रकारों में से कम से कम 13 पर्यावरण संबंधी विषयों मुख्यतः ज़मीन पर कब्ज़ा, औद्योगिक उद्देश्यों के लिए अवैध खनन और भ्रष्टाचार पर काम कर रहे थे,
‘प्रेस एंड प्लैनेट इन डेंजर, 2024′ रिपोर्ट में यूनेस्को ने अपने विश्लेषण में ऐसे उदाहरण उजागर किए, जिनमें 2009-2023 की अवधि में पर्यावरणीय मुद्दों पर रिपोर्टिंग करने वाले कम से कम 749 पत्रकारों और समाचार मीडिया संस्थानों को हत्या, शारीरिक हिंसा, हिरासत और गिरफ्तारी, ऑनलाइन उत्पीड़न या कानूनी हमलों का निशाना बनाया गया. 2019-2023 के बीच 300 से ज़्यादा हमले हुए – जो पिछले पांच वर्षों (2014-2018) की तुलना में 42% अधिक है.
पिछले 15 वर्षों में कम से कम 44 पत्रकारों ने पर्यावरणीय मुद्दों की जांच की है, जिनमें से केवल 5 मामलों में ही दोषसिद्धि हुई है. यानी लगभग 90% मामलों में कुछ नहीं हुआ.
बर्वे मामले में भी स्थानीय पत्रकारों ने, जो हमले का विरोध करने की योजना बना रहे हैं (नीचे पोस्टर देखें), ने कहा कि स्थानीय पुलिस ने तुरंत एफआईआर दर्ज नहीं की और मोर्डे को गिरफ्तार करने में देरी की.

समर्थ भारत परिवार, जो अखबार प्रकाशित करता है और यूट्यूब चैनल प्रसारित करता है, के निदेशक डॉ. समीर राजे ने कहा कि पुलिस ने जांच को बहुत हल्के में लिया. स्नेहा एफआईआर दर्ज कराने की स्थिति में नहीं थी, लेकिन जब वह होश में आई, तो उन्होंने अपनी शिकायत पुलिस में की. हालांकि, पुलिस ने कहा कि हमले में घायल हुए अन्य लोगों ने पहले ही शिकायत दर्ज करा दी थी.
हमले की जघन्य प्रकृति के बावजूद शिकायतकर्ता सुधाकर बाबूराव काले द्वारा दर्ज की गई एफआईआर में केवल गंभीर चोट, धमकी, गैरकानूनी जमावड़ा और धमकी (भारतीय न्याय संहिता की धारा 118 (2), 115 (2), 189 (2), 191 (2), 190 और 351 (2) से संबंधित धाराएं सूचीबद्ध हैं, ये सभी ऐसे अपराध हैं, जिनके लिए अधिकतम एक से दो साल की सजा का प्रावधान है!
इस संबंध में पुलिस अधीक्षक संदीप सिंह गिल ने एफएससी को बताया कि मोर्डे को अभी गिरफ्तार नहीं किया गया है. उन्होंने दावा किया है कि मोर्डे को फ्रैक्चर हुआ है और वे एक स्थानीय अस्पताल में भर्ती हैं.
गिल ने आगे कहा, ‘जैसे ही उन्हें छुट्टी मिलेगी, हम उन्हें गिरफ्तार कर लेंगे. उनके परिवार के अन्य सदस्यों (उसके बेटे प्रशांत और नीलेश मोर्डे) सहित लगभग चार-पांच लोगों को गिरफ्तार किया गया था. उन्हें ज़मानत पर रिहा कर दिया गया है.’
मालूम हो कि स्थानीय पुलिस की प्रारंभिक रिपोर्ट में कहा गया है कि मोर्डे नदी के किनारे एक दीवार का निर्माण कर रहे थे और स्थानीय लोगों को डर था कि यह अवैध है. हालांकि, जांच से यह पता चलेगा कि यह सार्वजनिक भूमि पर था या नहीं.
गिल ने कहा, ‘मुख्य आरोपी ने पांच भाइयों की ज़मीन का एक टुकड़ा खरीदा था और हमें पता चला है कि उनमें से चार ने ज़मीन बेच दी, लेकिन एक भाई ने नहीं. संभवतः, उनके रिश्तेदारों ने पत्रकार को सूचित किया होगा कि मोर्डे सरकारी या सार्वजनिक भूमि पर अतिक्रमण कर रहे हैं.’
उन्होंने कहा कि पुलिस मामले की पूरी जांच करेगी. उन्होंने यह भी बताया कि वीडियो देखते ही उन्होंने एक वरिष्ठ अधिकारी को घटनास्थल पर भेज दिया था.
गिल के अनुसार, ‘अगर उन्हें लगता भी था कि वीडियो से उनकी बदनामी हो रही है, तो वे पुलिस में शिकायत कर सकते थे या उपलब्ध संवैधानिक तरीकों का इस्तेमाल कर सकते थे. वह हिंसा का सहारा नहीं ले सकते. उन्हें किसी पर भी हमला करने का कोई अधिकार नहीं है.’
गिल ने आश्वासन देते हुए कहा, ‘हां, अपराध दर्ज करना जांच अधिकारी का विशेषाधिकार है, लेकिन कभी-कभी तुरंत हस्तक्षेप करना ज़रूरी हो जाता है. वह चाहती थीं कि हम उनकी शिकायत पर एक एफआईआर दर्ज करें, लेकिन हम एक ही घटना के लिए दो एफआईआर दर्ज नहीं करते और उस समय, वह बयान देने की स्थिति में नहीं थीं. हमने उस व्यक्ति का बयान लिया, जिसे चोट लगी थी. हमने उनसे एक विस्तृत बयान दर्ज करने को कहा है और ज़रूरत पड़ने पर हम धारा बढ़ा देंगे. मैं व्यक्तिगत रूप से इसकी जांच करूंगा.’
(यह आलेख मूलतः फ्री स्पीच कलेक्टिव पर प्रकाशित हुआ था.)





