अरुणाचल प्रदेश के तीन जिलों के ग्रामीणों ने सोमवार (14 जुलाई) को अपर सियांग के गेकू गांव में एक रैली में भाग लिया और प्रस्तावित सियांग अपर बहुउद्देशीय परियोजना के खिलाफ शांतिपूर्ण मार्च निकाला. यह लगभग 12,000 मेगावाट की जलविद्युत परियोजना है, जो पूर्वोत्तर अरुणाचल प्रदेश में सियांग नदी पर प्रस्तावित है.
स्थानीय समुदाय कई वर्षों से राष्ट्रीय जलविद्युत निगम (एनएचपीसी) द्वारा क्रियान्वित की जा रही जलविद्युत परियोजना और बांध के खिलाफ आंदोलन कर रहे हैं, क्योंकि उन्हें अपनी पैतृक भूमि से विस्थापन, जिससे वे सांस्कृतिक रूप से जुड़े हुए हैं, तथा बांध के कारण क्षेत्र में होने वाले पर्यावरणीय प्रभावों का डर है.
रैली के वीडियो में कम से कम एक हज़ार लोग गेकू के एक मैदान में इकट्ठा हुए और बाद में गांव की सड़कों पर विरोध मार्च निकालते हुए दिखाई दिए. मार्च के दौरान नारे लगाए, ‘हमें न्याय चाहिए’, ‘सशस्त्र बलों को हटाओ’, ‘बांध नहीं, पीएफआर नहीं’ और ‘भारत माता की जय’. इलाके में पुलिस और सशस्त्र बलों की तैनाती के बीच यह शांतिपूर्ण मार्च निकाला गया.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के प्रधान सचिव पीके मिश्रा को 14 जुलाई को लिखे एक पत्र में सियांग स्वदेशी किसान मंच (एसआईएफएफ) ने परियोजना प्रभावित परिवारों (पीएएफ) और सभी डूब गांवों के निवासियों की ओर से परियोजना के साथ-साथ प्री-फिजिबिलिटी रिपोर्ट (पीएफआर) गतिविधियों के प्रति अपना कड़ा विरोध व्यक्त किया, जिसे सरकार लोगों की सहमति के बिना संचालित कर रही है.
पत्र में कहा गया है कि अरुणाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री पेमा खांडू द्वारा अपने आधिकारिक फेसबुक और ट्विटर एकाउंट पर किए गए दावे, जिनमें कहा गया है कि रीगा के ग्रामीणों ने अपनी सहमति दे दी है, ‘तथ्यात्मक रूप से गलत हैं’ और गांव और जनजातीय परिषद ने अपनी सहमति नहीं दी थी, और किसी भी संबंधित प्राधिकारी द्वारा गांव में कोई सार्वजनिक बैठक नहीं की गई थी.
पत्र में दावा किया गया है, ‘हम लगातार हो रहे मानवाधिकार उल्लंघनों और प्रभावित समुदायों के लिए प्रभावी शिकायत निवारण तंत्र की कमी को लेकर बेहद चिंतित हैं. हमारे लगातार प्रयासों के बावजूद राज्य के अधिकारियों ने डूब प्रभावित गांवों की चिंताओं का पर्याप्त समाधान नहीं किया है. इसके बजाय माननीय मुख्यमंत्री और ओजिंग तासिंग जैसे अन्य विधायकों द्वारा प्रचारित एक झूठा विमर्श परियोजना के प्रति सामुदायिक समर्थन की भ्रामक तस्वीर पेश करता है.’
इसमें प्रधान सचिव से आग्रह किया गया है कि वे मंगलवार (15 जुलाई) को आयोजित होने वाली बैठक में परियोजना के प्रति ‘व्यापक विरोध’ सहित प्रधानमंत्री के समक्ष सटीक जमीनी हकीकत प्रस्तुत करें.
इसमें आग्रह किया गया है कि, ‘हमें पूरी उम्मीद है कि परियोजना प्रभावित क्षेत्रों और जलमग्न गांवों की चिंताओं को प्राथमिकता दी जाएगी, तथा भ्रामक प्रस्तुतियों के आधार पर कोई निर्णय नहीं लिया जाएगा.’
युवाओं ने भी लिखा पत्र
एसआईएफएफ की युवा शाखा द्वारा 14 जुलाई को प्रमुख सचिव को लिखे गए एक अन्य पत्र में इस बात पर ज़ोर दिया गया कि लोग परियोजना के पीएफआर के लिए केंद्रीय सशस्त्र पुलिस बलों (सीएपीएफ) की तैनाती के ख़िलाफ़ अनिश्चितकालीन शांतिपूर्ण विरोध प्रदर्शन पर हैं. इस असंवैधानिक प्रथा की निंदा करते हुए पत्र में आगे कहा गया कि वे, सियांग के आदि लोग, आने सियांग (बड़ी सियांग नदी) पर बांध नहीं बनाना चाहते और न ही अपनी मातृभूमि से विस्थापित होना चाहते हैं.’
आदि उन प्रमुख जनजातीय समुदायों में से एक हैं जो उस क्षेत्र में रहते हैं जहां सियांग बांध प्रस्तावित है.
पत्र में आग्रह किया गया है कि परियोजना प्रस्ताव को रद्द किया जाए और परियोजना से जुड़ी सभी गतिविधियों को रोक दिया जाए. इसमें कहा गया है, ‘जब तक हमारी मांग पूरी नहीं हो जाती, हम विरोध प्रदर्शन जारी रखेंगे.’
गौरतलब है कि इस साल 23 मई से ग्रामीण परियोजना के पहले चरण – प्री-फिजिबिलिटी रिपोर्ट (पीएफआर) के लिए एक अध्ययन – को लागू करने के लिए सशस्त्र बलों की तैनाती के खिलाफ अनिश्चितकालीन विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं.
जैसा कि द वायर ने पहले रिपोर्ट किया था, प्रदर्शनकारियों ने सेना को गांव में प्रवेश करने से रोकने के लिए एक पुल को भी जला दिया था.
अपर सियांग परियोजना – जो अगर बन जाती है तो भारत की सबसे बड़ी जलविद्युत परियोजना होगी– विस्थापन, घरों और कृषि भूमि के नुकसान जैसी चिंताओं के साथ-साथ समृद्ध जैव विविधता के नुकसान जैसे पर्यावरणीय प्रभावों के अलावा, एक भूकंपीय रूप से सक्रिय क्षेत्र में प्रस्तावित है.





