अब्दुल सलाम क़ादरी
रायपुर। छत्तीसगढ़ में कांग्रेस की हालत लगातार पतली होती जा रही है। कभी सत्ता में मजबूत पकड़ रखने वाली पार्टी आज संगठनात्मक कमजोरी, अंदरूनी कलह और जनता के बदलते रुझान से जूझ रही है। विधानसभा चुनाव 2023 में मिली हार के बाद से कांग्रेस का पुनरुद्धार दूर की बात लग रहा है।
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि कांग्रेस की गिरावट का सबसे बड़ा कारण उसका नेतृत्व संकट और कमजोर संगठन है। विधानसभा चुनाव में जहां भाजपा ने विकास और स्थिर शासन के मुद्दे पर मतदाताओं को साधा, वहीं कांग्रेस अपने उपलब्धियों को जनता तक नहीं पहुँचा पाई। रिपोर्ट के अनुसार, कांग्रेस को सत्ता विरोधी लहर और अंदरूनी खींचतान ने भारी नुकसान पहुँचाया।
राज्य इकाई में अब भी नेतृत्व को लेकर असमंजस बरकरार है। खबर के मुताबिक, कांग्रेस के भीतर कई वरिष्ठ नेता संगठन की कार्यशैली और दिशा पर सवाल उठा चुके हैं। वहीं, पूर्व मुख्यमंत्री भूपेश बघेल और अन्य गुटों के बीच तनातनी खुलकर सामने आने लगी है।
इधर, भाजपा ने कांग्रेस पर लगातार निशाना साध रखा है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने हाल ही में कहा था कि “नक्सलवाद को दशकों तक कांग्रेस की नीतियों ने प्रोत्साहन दिया।” (इंडियन एक्सप्रेस रिपोर्ट)। भाजपा नेताओं का आरोप है कि कांग्रेस अब जनता से जुड़ाव खो चुकी है और सिर्फ “नेता-केंद्रित राजनीति” में उलझी हुई है।
राज्य की जनता में भी कांग्रेस के प्रति विश्वसनीयता का संकट दिखाई दे रहा है। कांग्रेस के हालिया विरोध-प्रदर्शनों को आम नागरिकों का खास समर्थन नहीं मिल पाया। अमर उजाला के अनुसार, भूपेश बघेल के बेटे की गिरफ्तारी के बाद कांग्रेस द्वारा किए गए आर्थिक नाकेबंदी आंदोलन को जनता ने “व्यक्तिगत स्वार्थ” से जोड़कर देखा।
राजनीतिक विशेषज्ञों का कहना है कि कांग्रेस को अब राज्य में अपनी पकड़ मजबूत करने के लिए संगठन पुनर्गठन, जमीनी कार्यकर्ताओं की भागीदारी और स्पष्ट विकास एजेंडा की आवश्यकता है। अगर पार्टी ने जल्द दिशा नहीं बदली, तो आने वाले लोकसभा और निकाय चुनावों में स्थिति और खराब हो सकती है।
फिलहाल कांग्रेस के लिए छत्तीसगढ़ में राह आसान नहीं है — उसे न सिर्फ विपक्षी हमलों का सामना करना है, बल्कि अपने भीतर पनप रही असंतोष की आग को भी शांत करना है।





